पतित पावनी धारा गायत्री- गंगा की ...............….......................गायत्री गंगा दोनों की, पतित पावनी धारा है।पाप-ताप से मुक्ति दिलाने, तप से इन्हें उतारा है।

पतित पावनी धारा गायत्री- गंगा की 
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गायत्री गंगा दोनों की, पतित पावनी धारा है।
पाप-ताप से मुक्ति दिलाने, तप से इन्हें उतारा है।।
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सक्ती:---गंगा और गायत्री दोनों ही, देव संस्कृति के ज्ञान- विज्ञान की पुण्य धाराएं हैं। इन दोनों में भारत माता की दिव्य चेतना समायी है, इनमें देव-भूमि और दिव्य-भूमि भारत के पुरातन ऋषियों के महातप का प्रखर परिचय सन्निहित है। तप की पुन्य परंपरा में भगीरथ जी सूर्यवंश की पीढ़ी में अवतरित हुए, ज्येष्ठ शुक्ल दशमी की इसी पुण्य बेला में ब्रह्मर्षि विश्वामित्र जी के तप को भी पूर्णता मिली। भगीरथ जी की महासाधना ने माता गंगा के अवतरण को संभव- साकार किया, गंगा की लहरों ने भारत देश की चेतना में नव प्राण भरे, इसी प्रकार राजस स्वभाव वाले महाराज विश्वरथ जो ब्रह्मर्षि विश्वामित्र बने, आदि शक्ति माता गायत्री उनके अन्तःकरण में अवतरित होकर युग शक्ति के रूप में भारत माता की सम्पूर्ण चेतना में संव्याप्त हो गई। वेदों में निहित समस्त ज्ञान- विज्ञान बीज रूप में गायत्री मंत्र में विद्यमान है, तमाम देव शक्तियां इसी महा शक्ति की धाराएं हैं, उनका प्रादुर्भाव इसी से हुआ और वे इसी से पोषण पाती हैं, इस रूप में गायत्री वेद माता हैं।  जिन्होंने भी मां गायत्री महाशक्ति का आंचल थांमा, उन सभी की यही मानना है कि गायत्री महामंत्री, मात्र एक मंत्र भर नहीं है, बल्कि इसमें सभी मंत्रों का समावेश है, इसके चौबीस अक्षरों में शक्ति समुद्र समाए हैं, तभी तो ऋषि वाणी कहती है- 
गायत्री चेव संसेव्या धर्म कामार्थ मोक्षदा। 
गायत्र्यास्तु परंनास्ति इह लोके परमं च।।
अर्थात- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करने वाली गायत्री का जप करना चाहिए, गायत्री मंत्र से बढ़कर कोई मंत्र इस लोक और परलोक में नहीं है। गंगा मइया के जलकणों और मां गायत्री के मंत्र अक्षरों में ज्ञान- विज्ञान के सभी तत्व समाए हैं।
गंगा का महत्व भारतीय समाज में कितना है, इसे शब्दों में नहीं लिखा जा सकता, पुन्य सलिला त्रिविध पापनाशिनी- भगीरथ ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन इस धराधाम पर अवतरित हुई, इसीलिए इस पर्व को "गंगा दशहरा" कहा जाता है, गायत्री मंत्र के रूप में ज्ञान की गंगा भी आज ही के दिन अवतरित हुई थी, इसीलिए आज के दिन को "गायत्री जयंती" के रूप में भी मनाया जाता है। 
"आज गायत्री और गंगा के अवतरण का महापर्व है," आज का दिन विशेष और विशिष्ट है। क्योंकि आज अमूर्त ज्ञान मूर्त हुआ पवित्रता अभिव्यक्त हुई। मानव जीवन के विकास के एक नए शिखर को स्पर्श करने का साहस संजोया गया, यह सब आज के ही दिन संभव हुआ।
आज का दिन हम सभी के लिए संकल्प का दिन है। गायत्री की तीन धाराएं हैं, ये तीनों धाराएं यह शिक्षा देती हैं कि 
(1) मनुष्य को औरों के लिए उत्कृष्टता हेतु प्रभु समर्पित जीवन जीना चाहये।
(2) ऐसे संकल्प उभरे कि जितना श्रम समय और बुद्धि अपने जीवन की आवश्यकता पूर्ति के अतिरिक्त बचेगा, उसे दुखियों का दुख दूर करने असहायों की सेवा करने में लगे और 
(3) लोक मंगल के कार्य के लिए सहायता करने की भावना हो 🙏
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श्याम कुमार चन्द्रा सक्ती छत्तीसगढ़

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